Thursday, December 23, 2010

Oracle 10g for Windows 7

INSTALLATION STEPS for Oracle 10g

To install and configure Oracle 10.2 on the system, k

indly follow the following steps:

I hope you have already downloaded Oracle 10g on your system.

There are 3 folders :

1. 10.2.0.4

2. Client

3. Net

STEP1 : In the Client folder, Edit 'Oraparam.ini' inside the 'Install' Folder

delete lines from 46 to 74

Save the file.

Step2 : Run the Setup.

Select Runtime option to install

Step3 Installation path should be D:\Oracle\Product\

remove the remaining path.


4 Complete the setup. This will install Oracle 10.1 version. Now, add .Net related setup

5 In NET folder, edit oraparam.ini file inside Install Folder

delete line 39

Save the file.

6 Run the Setup.

Select the dropdown within Home Details and select the pop-up option(eg. oraclient10g_Home).



7 Uncheck Last 3 options to install Server.



8 Click Finish. Now Upgrade Oracle to 10.2.0.4

9 In 10.2.0.4 Folder, edit oraparam.ini file inside Install

delete line 33

Save the file.


10 Run the Setup.

Select the dropdown within Home Details and select the pop-up option(eg. oraclient10g_Home).

11 Click Finish.

12 Copy any existing 'tnsnames.ora' file and place at ‘D:\oracle\product\NETWORK\ADMIN’


And add your server details. Ex:

sc.advin.pg =

(DESCRIPTION =

(ADDRESS_LIST =

(ADDRESS = (PROTOCOL = TCP)(HOST =)(PORT = 1521))

)

(CONNECT_DATA =

(SERVER = DEDICATED)

(SID = sc)

)

)


13 Open SQL*Plus application



and test the following login details:

UserID : system

Pwd: abcd

Host:

15 With Authorized credentials, You can see the sql> prompt confirms Oracle is working fine.



Sunday, May 31, 2009

मेरी भारत से ओस्लो (नोर्वे) की यात्रा....

मैं आपको अपनी ओस्लो (नोर्वे की राजधानी) की यात्रा के बारे में बताता हूँ आशा करता हूँ की आपको पसंद आएगी।

जब बैंगलोर से चला था...तभी से मैं बहुत excited था।
पर साथ ही टेंशन थी की काम क्या होगा, कैसी कंपनी होगी, लोग कैसे होंगे, खाना कैसा होगा वगेरा वगेरा

मेरे साथ संदीप , तेजस, प्रसाद और गोपी भी थे जो की मेरे साथ ही कम्पनी में काम करते हैं। हमे अपनी कम्पनी के client से मिलने जाना था.
flight मैं सब लोग अलग अलग बैठे थे...इस लिए कुछ ख़ास किस्सा नहीं हो पाया उप्पर से मेरी सीट पंख के ऊपर थी..इसलिए कोई पिक्स नहीं ,
जब हम Frankfurt मैं उतरे, सब लोगों ने एक दूसरो से मिले ऑफ़ aircraft और airport की पिक्स ली.
काफी मजा आया था नो घंटे एक सीट पर बैठे बैठे कमर जवाब दे चुकी थी . खैर , अगली फलाईट ३ घंटे बाद थी , और हमारा प्लेन A36 पर था.
या ये समझो की एक कोने से दुसरे कोने जाना था क्योंकि हम C3 पर थे. ३ किमी लम्बा एयरपोर्ट जो था.
खैर, हम भी मस्ती मैं फोटो शोतो खींचते वहां पहुंचे.. प्लेन कुछ देर बाद चल दिया.
पर इस बार, मुझे अच्छी सीट मिली, और मैंने कुछ पिक्स भी खिंची.

ओस्लो एयरपोर्ट से ओस्लो आधे घंटे के सफ़र मैं पूरा हुआ जो की एक सुन्दर ट्रेन मैं था.
ओस्लो से हम अपना सामान ले कर होटल पैदल ही गए (*पास ही था)
नए नए लोग दिखने लगे ऊंची ऊंची इमारतों ने मेरा स्वागत किया.

और हम थओन होटल मैं पहुंचे और सामान रखा.
बहुत भूक भी लगी थी, इसलिए फटाफट घूमने का प्लान भी बना दिया.

ओस्लो पहुँचने के बाद हम घूमने निकल पड़े. काफी नियंत्रित यातायात था. पैदल चलने वालों को प्रायोरिटी दी जाती है. कोई गाडी कितनी भी तेज क्यों न जा रही हो, अगर पैदल चलने वालों को सड़क पार करनी है तो वो वहीँ रुक जाती है.
लोग किराये की सायकिल से सफ़र करते है. पूरे ओस्लो मैं काफी जगह ऐसे सायकिल स्टैंड मिल जायेंगे.
मैंने किसी गाडी को हार्न बजाते नहीं देखा. कमाल है न?
यहाँ लड़कियां लड़कों से ज्यादा दिखी. पता नहीं पर शायद यहाँ लड़के लोग फालतू घूमना पसंद नहीं करते...ये मेरी राय है.
और एक दिलचस्प बात ये की ज्यादातर हर लड़की सिगरेट पीती है.... थोडा टशन और थोडी ठण्ड.
अपने आपको अलग दिखने के लिए वो शरीर मैं इधर उधर बाली और टट्टू करवाती हैं.

बहार थोडा घूमने पर हमे Mc donalds मिला जहाँ फ्रेंच फ्राईस खाए और बर्गर खाए और होटल लोट आये.
काफी थके होने से जल्दी ही हम सो गए.
सुबह हमको लेने CEO रॉबर्ट आ गए. हमने फटाफट होटल द्वारा दिया हुआ नाश्ता किया.....ये एक अलग बात है की कुछ समझ नहीं आ रहा था की हम क्या खाएं और क्या नहीं.

होटल से ऑफिस का रास्ता पैदल ही पूरा किया जो की १० मिनट मैं हो गया.
ऑफिस काफी सुन्दर बनाया हुआ था. सभी लोग जैसे हमारा स्वागत कर रहा हो.
हम भी चेहरे पर मुस्कान लिए ऑफिस में दाखिल हुए. वहां हमारा स्वागत कम्पनी के CEO ने किया. बाद मैं अंजलि भटनागर जोकी वहां administration मेनेजर है.
और बाद मैं दिनेश माथुर से भी मिले जो की वहां technical अफ़सर है. उसके बाद हमारी मीटिंग हुई और कंपनी और उसके प्रोजेक्ट की जानकारी दी.
काफी हल्का महसूस हो रहा था वहां.
खेर.
हमको Laptops और बैठने की लोकेशन दी. और हमने सारे जरूरत के softwares चेक किये.
इतने ही में लंच टाइम हो गया ऑफ़ कंपनी ने हमे लंच coupons दिए...पर हमारा सर तब चकराया जब देखा खाने मैं घास फूस है या फिर मांसाहारी खाना.
इतने मैं वहां दिनेश आया और हमको शाकाहारी खाना कोनसा है बताया. तब जा कर जान मैं जान आई.
खैर अब तो देख कर ही बता देता हूँ की क्या हमारे खाने लायक है और क्या नहीं.

धीरे धीरे काम शुरू हुआ ...और शाम हो गयी.
हम वापिस अपने होटल मैं आ गए.

अगला कार्यक्रम हमारा डिनर करने का था. मार्केट मैं हमको 'पंजाबी तंदूर' नाम से एक भारतीय restorent मिल गया. सब लोग वहीँ चले गए और रास्ते में भी खूब फोटो खीचते गए.
वहां खाना अच्छा था. ऑफ़ हमने पेट भर कर खाना खाया.

तब तक नो बज चुके थे...और हम अचम्भे में थे की अभी भी सूरज पूरा दिख रहा था .... सब कुछ अलग सा लगा.
खैर हम मस्ती करते करते रूम पर आ गए और सोने की तय्यारी करी. पर सोने का मन ही नहीं कर रहा था....ऐसा लग रहा था की हम शाम को क्यों सोने जा रहे हैं..पर जब घडी देखि तो पता चला ११ बज चुके थे. फिर हमने पूरे परदे लगा कर कमरे में अँधेरा किया और फिर नींद आ गयी.

आगे के तीन दिन बहुत साधारण से थे....वोई ऑफिस जाना और होटल में आ कर सो जाना.

तीरसे दिन हमको अंजलि ने बताया की हमे नए होटल मैं शिफ्ट होना है. ये होटल पहले वाले होटल से ज्यादा बड़ा और सुन्दर था.
हमने सारा सामान पैक कर होटल शिफ्ट किया.

आज सुबह से ही रिम झिम बारिश हो रही है. मौसम बहुत ठंडा है और ठंडी ठंडी हवाएं भी चल रही थी. और ऑफिस जाने मैं बड़ा मजा आ रहा था.
ऑफिस से सामने से एक सुन्दर सी ट्राम जाती है. आज वो भी बहुत अच्छी लग रही थी.

आज शनिवार 9 मई है.
सभी दोस्तों ने आज घूमने का प्लान बनाया है. 'तेजस' जो हमारे ही साथ है वो ओस्लो में पहले भी रह चुका है. उसे पता है की कहाँ पर क्या देखने वाली जगह है और कैसे जाया जा सकता है.
Tejus ने बताया की हम पहले VIGELANDSPARKEN (VIGILANDS PARK ) जायेंगे.
अब जसे वो हमारा सेनापति था और हम उसके सैनिक थे. और चलने के लिए तय्यार हो गए.

बस स्टैंड पर आ कर उसने देखकर बताया की २० नंबर बस वहां जायेगी.
उस बस स्टैंड पर अगली बस के आने की सूचना लिखी आती है. और वो कब या कितने मिनट में आएगी वो भी लिखा आता है.
बस स्टैंड पर पूरा ओस्लो का नक्षा भी बना था और वहां से जाने वाली बसों के रूट अंकित थे,
कुछ ही मिनट में बस आ गयी. यहाँ बसे लाल रंग की थी, बड़ी और वोल्वो थी. या यूं कहूँ की दिल्ली की बसों जैसी हैं.
हमने ओस्लो पास लिया और बस में बैठ गए,
इस ओस्लो पास से हम किसी भी बस, ट्राम, लोकल ट्रेन और कुछ नाव में बैठ सकते हैं, इसके साथ साथ, हम किसी भी संघ्राह्लाया (Museum) में जा सकते हैं.
खैर, कुछ ही मिनट में वहां बस आ गयी और हम उस पार्क के लिए रवाना हुए,

करीब 10 मिनट में हम vigelands पार्क पहुँच गए. अन्दर जाने का gate बहुत बड़ा था. उसको पार करते ही कुछ sculptures शुरू हुए.
देख कर बड़ा अजीब लगा की सभी मूर्तियाँ Nacked थी, और आगे चल कर देखा तो एक मीनार सी थी जिसपर कलाकारी की हुई थी.
इतना समझ में आने लगा की ये भी कला का एक अंग है और कलाकार ने काफी बारीकी से इनको बनाया है.
इसके बाद हम विगेलान्ड्स म्यूज़ियम गए जहाँ उन मूर्तियों को बनाने से ले कर सभी जानकारियाँ थी,
इसके बाद हम आगे चले और Oslo Sentral Stasjon (central station) पर आ गए, वहां पर एक MALL से मैंने एक जैकेट लिया . ये काफी महंगा पर सुदर था, महंगा इस लिए था क्योंकि यहाँ पर सभी चीज़ें दूसरे देशों से आती हैं जैसे डेनमार्क, लन्दन, जर्मनी वगेहरा .
इसके बाद हम ओस्लो ऑपेरा हाउस गए. ये बहुत सुन्दर इमारत थी. और तीन तरफ से समुन्द्र से घिरी थी. वहां पर हमने काफी फोटो लिए. अब शाम हो चली थी, और हम बहुत थक चुके थे. हमने होटल तक जाने वाली underground metro ली और अपने कमरे में पहुँच गए. रात का खाना जैसे तैसे बना कर खा लिए और सोने चले गए.

अगले दिन सुबह बारिश हो रही थी. पर मैं और गोपी (गोपी पद्मनाभन ) दोनों बिग्दोय (BIGDOY) जाने के लिए निकल दिए,
बिग्दोय जाने के लिए हमें बोट से जाना था.
ये सफ़र बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि बारिश के बाद बहुत अच्छी हवा चलने लगी थी.
बोट से हम बिग्दोय १० मिनट मैं ही पहुच गए. ये अभूत सुन्दर जगह थी, खाली पर साफ़ सड़क पर मैं और गोपी चले जा रहे था. हमारे हाथों मैं ओस्लो का नक्षा था और उसी के सहारे हम viking museum जा पहुंचे.
इस museum में बहुत पुरानी नाव राखी थी जो पहेली बार ओस्लो तक पहुंची थी. ये करीब ४०० साल पुरानी बात थी. उस समय ओस्लो का नाम 'christenia' शहर था.
ये सभी नावे खुदाई में प्राप्त हुई थी. इन नावों पर बहुत सुन्दर नक्काशी अभी भी देखि जा सकती है. उस नाव में जो जो सामान मिला था उसको दिखाया गया था.
museum से बहार निकले तो देखा, कुछ लोग पार्क में सामन लगा रहे थे. ये सामान देखने में बहुत पुरानी सभ्यता का लग रहा था. हमने एक व्यक्ति से पुछा के वो यहाँ क्या कर रहा है, तो उसने बताया की viking एक सभ्यता थी जो इस शहर में शुरू हुई, वाइकिंग सभ्यता के लोग कलाकार और लडाकू थे, हम सब उनके जीवनशेली को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं, ये सब सुनकर हमें बहुत अच्छा लगा और हम दोनों देखने लगे. एक और लोहार द्वारा तीर बना रहा था, तो एक और कुछ ओरतें खाना बना रही थी, और वो भी उसी दोर के सामान द्बारा. एक और लकडी पर नक्काशी करते लोग थे तो एक तरफ तीर कमान चलाना दिखा रहे थे.
मैं भी तीर कमान चलाने को उत्सुक था, इस लिए मैंने भी निशाना लगाया. पहली बार तो धनुष और तीर ठीक से हाथ मैं नहीं आ रहे थे. पर दूसरी बार में मैं कुशलता से तीर चला सीख लिया, पर हर बार मेरा निशाना कुछ इंचों से रह जाता.
इतना सब करके हम Norsik Folkemuseum (नोर्वे की सभ्यता) मैं गए. वहां ३००-४०० साल पुरानी झोपडियां और पहला इसाई गिरजा दिखाया गया था. ये सब एक खुले मैदान मैं था और ऐसा लग रहा था की हम उसी काल मैं पहुँच गए हैं.
वहां से निकल कर हम FRAM Museum गए.
FRAM वो जहाज था जो पहली बार north pole पर गया था . हम भी उस जहाज के अन्दर जा सकते थे, जहाज के अन्दर का दृश्य बहुत अच्छा था. हम कल्पना कर सकते थे की northpole जाने वाले २०-३० लोग कैसे रहते थे. ये वाकई बहुत बड़ा जहाज था,
इसके बाद कुछ और museum देखे जिसमें कई प्रकार के जहाज दिखाए गए थे, पर मैं उन जहाजों के मोडल्स देख देख कर पाक चूका था और थक भी गया था. हमने वापिस जाने के लिए फिर से नाव मैं बैठ कर ओस्लो शेहेर आ गए.
ओस्लो मैं फिर से पंजाबी तंदूरी होटल मैं खाना खाया और होटल मैं आ कर सो गए क्योंकि अगले दिन ऑफिस भी जाना था.

अगले सोमवार से शुक्रवार के दिन बहुत सामान्ये थे. कुछ अलग नहीं था बस एक शाम को फुटबाल मैदान मैं जा कर हम बैठ थे और खिलाड़ियों को खेलता देखा था. और मौका लगता तो छोटे बच्चों के साथ थोडा खेल भी लेते थे.

आज १६ मई (रविवार) है
मैंने और प्रसाद ने सुबह सुबह घूमने का प्लान बना लिया था. इसलिए दोनों नोबल पीस prize सेंटर देखने निकल दिए.

आज मौसम काफी सुहाना था. आसमान पर बादल छाए हुए थे. और ठंडी ठंडी हवा और अच्छी लग रही थी.
चूंकि हम दोनों के पास ओस्लो पास था, इसलिए हम भूमिगत रेल द्वारा 'Nation Theater' के लिए रवाना हुए. National Theater ओस्लो का काफी माना हुआ थिएटर है जहाँ बड़े बड़े कार्यक्रम होते हैं. वहां से Oslo Peace Price Center बहुत पास था. इसलिए हम दोनों पैदल ही वहां पहुँच गए. यु समझिये की ये एक museum है जहाँ अब तक के दिए हुए सभी पुरस्कृत व्यक्तियों की जानकारी दी हुई है. अन्दर का नजारा बहुत सुन्दर पर अलग था.
अलग इसलिए क्योंकि वहां उन्होंने ओस्लो मैं रहने वाले लोगों के जीवन के उतार चढाव दिखाए हुए थे. की किस तरहां यहाँ के लोगों ने गरीबी से लड़कर एक बेहतर जीवन के लिए प्रयास किया. किस तरहां उन्होंने प्राक्रतिक मुश्किलों से लड़ते हुए विभिन्न देशों के साथ चलना सीखा. सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ की इनका इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. बस 300 साल ही हुए हैं. खैर, भारत से तुलना करना बेकार है.. भारत के इतिहास और संस्कृति के आगे ये शहर कुछ नहीं.
यहाँ पर मैंने martin luthar king jr. को सुना जो की एक अमरीकी था और जिसने अमरीकी-अफ्रीकी जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी और वो गांधी जी से बहुत प्रभावित था.
इसलिए मेरी और प्रसाद की नजरे महात्मा गांधी जी को ढूँढ रही थी. परन्तु जानकार बहुत दुःख हुआ की उनको यहाँ एक भी जगह नहीं मिली जिनको पूरा संसार अहिंसा का पुजारी कहता हैं.
हमने वहां के आलोचकों की पुस्तिका मैं इसका विवरण किया की उनको महात्मा गांधी जी की प्रतिमा या फोटो और विवरण भी देना चाहिए. और जब हमने उन लोगो से इस बारे मैं पुछा. उनका उत्तर कुछ अलग सा लगा, उनका मानना था की इस पुरूस्कार की स्थापना उनके मरने के बाद हुई थी. और सिर्फ जीवित व्यक्तियों को ही ये पुरूस्कार मिलता है.
खैर हमें इसी उत्तर से संतोष करना पड़ा. और हम उस हाल की तरफ बढे जहाँ ये पुरूस्कार दिया जाता है. ये काफी बड़ी इमारत थी और इसपर एक बड़ी से घडी भी लगी है. इसके अन्दर जाकर देखा तो बहुत अच्छा लगा. चारों तरफ बहुत बड़ी बड़ी paintings लगी थी. और यहाँ पर इसी में एक छोटा parliament house है जहाँ ओस्लो के नेता लोग हफ्ते में एक बार इखट्टे होकर विचारों पर अपनी सहमति / वोट देते हैं.
वहां से बहार आ कर हम दोनों शेल्सस(kjelsas) जाने का प्लान बनाया. और ५४ नंबर ट्राम का इंतज़ार करने लगे. ३ मिनट में वो ट्राम आ गयी और हम उसमें विराजमान हो गए.
३० मिनट के सफ़र के बाद हम एक ऐसे जगह पर पहुंचे जो ओस्लो के उप्परी पहाडी क्षेत्रों में आता है. ये बहुत सुन्दर और एकांत जगह थी. सुन्दर सुन्दर cottages बने हुए थे जिनकी फोटो हम अपने घरों में लगाना पसंद करते हैं या फिर फिल्मों में देखा करते हैं. प्रसाद उन घरों की फोटो लेने लग गया.
वहीँ पर Oslo Science and Technology Museum था, हम दोनों उस और चल दिए. Museum के अन्दर का डिजाईन बहुत प्रभावित करने वाला था.
एक तरफ उन्होंने बहुत पुराने पुराने केमरे रक्खे हुए थे. उनमे कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें हम आज कल भी यहाँ उसे करते हैं. सोचो जो केमरा इस्तमाल कर रहे हैं वहां उसे museum में जगह मिल चुकी है. है न कमाल की बात?
अन्दर उन्होंने बच्चो के लिए पर्यावरण के प्रति जागरूक होने के लिए पानी से लबालब प्रदर्शनी लगाईं हुई थी. उसमें जाने के लिए विशेष रबर के जूते पेहेन्ने होते हैं. वैसे मुझे उसमें अन्दर जाकर कुछ ख़ास मजा नहीं आया. और बहार आकर बच्चों के लिए बनाये हुए मोडल्स देखने चला गया.ये basement में बनाया हुआ था. वो भी मुझे ठीक ठीक ही लगा इनसे ज्यादा अच्छे मोडल्स दिल्ली के Nehru Science Centre में रक्खे हुए हैं. अब मैं ground floor पर बनी locomotive सेक्शन देखने लगा, वहां हवाई जहाज़ के cockpit को दिखाया हुआ था. और असली के एक हवाई जहाज़ को रखा हुआ था. इनके इलावा छोटे हेलीकॉप्टर भी थे. पुरानी रेल के डब्बे और मोटर गाडी और मोटर साईकिल दिखाई हुई थी. अब तक में इन चीज़ों को देख देख कर थक गया था और भूक भी लगने लगी थी.
इसलिए मैंने बहार निकल आया. गेट से पहले एक canteen थी वहां एक बर्गर ले लिया और बहार निकल आया. इस museum से छूती हुई एक छोटी से नहर ओस्लो शेहेर के बीच से गुजरती है. हमने उसी नहर के साथ साथ चलने का प्लान किया. ये जगह बहुत शांत और सुन्दर थी. इसके उप्पर एक सुन्दर लकडी का पुल बना हुआ था. मैंने और प्रसाद ने यहाँ खूब सारी फोटो खीचे. थोडा नीच आते हुए हमने बहुत सारे झरने देखे और वहां भी खूब फोटो खिचे. इसी बीच बारिश बढ़ने लगी और हमे बस ले कर वापिस ओस्लो आना पड़ा. थोडी देर में बारिश बंद हो गयी थी.
अब हम यहाँ के एक किले को देखने चल पड़े. बड़ी उम्मीदों से हमने किले में प्रवेश किया और अन्दर की खूबसूरती को देखने लगे पर ये क्या, हम किले से बहार आ चुके थे. ये समझो की शुरू होते ही ख़तम हो गया. अरे किला देखना है तो डेल्ही आओ और लालकिला देखो. आगरा का किला भी क्या कम है.... खैर इस किले के बच्चे को देख कर हम बहार आ गए.

जैसे छोटा सा शेहेर वैसे छोटा सा किला.

शाम होने लगी थी..इसलिए हम होटल लोट आये.
अगला दिन नोर्वे के लिए ख़ास था. क्योंकि 17 may को norway day था.
17 may की सुबह मैं और गोपी जल्दी तय्यार हो गए थे. हमे बताया गया था की यहाँ बहुत बड़े लोग जमा होंगे और स्कूली बच्चों की परेड होगी जो यहाँ के राजा को सलामी देंगे.
मैं और गोपी सुबह जल्दी जा कर ठीक नोर्वे के राजा के पास जा पहुंचे. हमने सभी परेड मैं शामिल लोगों की खूब सारी फोटो ली. पर थोडी देर में मैं और गोपी परेड देख देख कर थक गए...ख़तम ही नहीं हो रही थी...पता चला की 109 स्कूल इस परेड मैं शामिल हैं और अभी सिर्फ 30 स्कूल ही देखे हैं. ..बस, अब मैं और गोपी वापस होटल को निकल पड़े....पर ये क्या, सभी ट्रेन्स एक दम भरी हुई थी., और स्टेशन पर जाने के लिए एक लम्म्म्म्म्म्म्बी कतार मैं लगना पड़ता. सो दोनों नैन पैदल ही चलना बेहतर समझा. रास्ते मैं पूंजाबी तंदूर पर खाना खाकर होटल लोट आये, दोनों बहुत थक चुके थे. इसलिए पलंग पर पड़ते ही सो गए....3-4 घंटे बात संदीप ने डिनर के लिए उठाया. मैं उसके साथ 'पोहा' बनाने जुट गया. 'पोहा' खा कर पेट भर चूका था और एक और नींद लेने की तयारी होने लगी क्योंकि अगले दिन फिर से ऑफिस का काम शुरू होना था.
आगे के 5 दिन बहुत साधारण थे. बस 20 को हमसब ऑफिस की तरफ से डिन्नर पर गए. 23 तारिख नजदीक आ चुकी थी. हमसब अपनी अटेची सेट कर सुबह का इंतज़ार करने लगे. हमारी flight 6:30 AM की थी, और taxi को 3:30 AM आने का टाइम दिया. taxi टाइम पर थी और कुछ ही पलों मैं हम ओस्लो शेहेर से विदा लिया और frankfurt को रवाना हो गए जहाँ से भारत के लिए हमारी अगली उडान लेनी थी.
मन में ओस्लो की यादों को लिए मैंने उसे अलविदा कहा और मन ही मन बोला की मौका लगा तो जल्दी यहाँ फिर आऊंगा.

और इसीके साथ में बंगलोर आ गया.

--शरद

Wednesday, December 24, 2008

About Sharad Kumar Saxena

Sharad is having 6+ yrs experience in IT industry.
Presently working with RMSI (a CMMi level-5 Company) as 'Project Leader' for the last 2 yrs.
Previously he worked with MPO Corporation as 'Senior Software Engineer' for 2 yrs and in 'Wiley India Ltd' as 'Technical Reviewer' for 1 yrs.

Currently he is working on developing GIS based applications in ASP.Net 2.0 and C# with SQL Server 2005 and just started a new project using Sharepoint Server.